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Hemant Latta

Tragedy

4  

Hemant Latta

Tragedy

बेरोजगार

बेरोजगार

2 mins
4

धूल फांक रहीं कुछ किताबें,

घड़ी बंद, 

फटा बस्ता भी पड़ा है,

उम्मीदों के बोझ तले एक नौजवान खड़ा है!!


दीवारें सीलन में है, 

कमरे में झाड़ू नहीं लगी है, 

कितनी मेहनत के बाद भी,

किस्मत उसकी ठगी है!


क्या करेगा? कब करेगा?

समाज के ताने, 

घरवालों की जुबां पर चढ़ चुके है,

साथी सारे, दोस्त उसके, 

आगे बढ़ चुके है!


अकेला रहा है तो अकेलापन, 

उसके अकेले ही पास है, 

कर रहा कोशिश वक़्त बदलने की, 

पर वक़्त कहां उसके साथ है!


जेब में पैसे नहीं, 

कपड़े रोज वही पहन लेता है, 

जो बोले जैसा बोले, 

वो सब सह लेता है!


लाइब्रेरी की दीवारें भी,

उसकी जानकार हो गयी है, 

ताने देने में वो भी होशियार हो गई है!


पहले दिन दुनिया बदलने आया था, 

आज दुनिया खुद बदली तो कैसा लगा?

एक करंट सा आया दिमाग में, 

और लड़का बेहोश हो गया, 

उठने की हिम्मत नहीं, 

खत्म अब जोश हो गया!


दुनिया मानता था जिसको, 

वो अब "दुनिया" न रही, 

प्रेमिका की प्रेमकथा, 

अब मधुर न रही, 

प्रेमिका भी भविष्य के रथ पर,

सवार हो गयी, 

एक सरकारी नौकर के साथ, 

विधिपूर्वक फरार हो गयी!!


शायद वो दुनिया को न समझ पाया, 

गुमनामी के अंधेरे में मेहनत न दिखा पाया, 

एफर्ट करने के चक्कर में,

रिजल्ट न ला पाया, 

और, 

सबसे तंग आकर उसने रस्सी को सहारा बनाया!


चला गया दुनिया से,

बताकर सब की भूल, 

रिजल्ट देखेगी दुनिया,

बस यही है इसका उसूल!


मानसिक पीड़ा को कैसे समझे, 

मानसिकता कहां बदल पायेंगे, 

चार कन्धे सहारा न बने उसके "हेमन्त",

पर अब उसको चार कंधों पर ले जाएंगे!


समाज के आगे मेहनत हार गई, 

राजनीति गयी, सरकार गई, 

क्या लिखे, कितना लिखे "हेमन्त"

एक लड़के को उसकी बेरोजगारी मार गई !


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