मेरे भारत के गांव
मेरे भारत के गांव
रह जाते है गांव,
मिट्टी में ही,
देहात कहां बढ़ पाते है,
शहर की चकाचौंध देख,
उम्मीदें भी लगाते है!
अपनी जात, भैया महान,
नेता छुटभैया , न करे कुछ काम,
विकास कहां कर पाते है?
शोषित भी शोषित कर दे,
पर अब, सब मौका कहाँ पाते है?
अभिव्यक्ति जिंदा है,
भरे पेट वालों की,
खाली पेट,
रोटी ढूंढते रह जाते है,
मालिक शोषण करता जाये,
बोल कहां ये पाते है?
उम्मीदें तो होती होगी,
कल फिर सवेरा होगा,
भूखे बच्चे न सोएंगे,
उनके कन्धे पर भी बस्ता होगा!
देश से प्यार भी है,
मुँह में "राम" भी है,
"देशप्रेमी" नाम भी है,
पर नहीं है तो,
पेट के लिए रोटी,
तन पर कपड़े,
एक इज़्ज़त भरा "पानी"!
सपने भी बड़े है,
खुद पैरों पर खड़े है,
सोने को जमीन नहीं,
पर फिर भी एक आस है,
बदलेगा जीवन, विश्वास है!
"हेमन्त" की सोच बड़ी सयानी है,
ये मेरे भारत के कई गांवों की कहानी है!!
