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Manjibhai Bavaliya,મનરવ

Abstract Comedy Fantasy

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Manjibhai Bavaliya,મનરવ

Abstract Comedy Fantasy

कविता

कविता

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बीखर बहाती प्यार यारी,

जमाना जलता बतन वारी।


हम है या नहीं नही है सुज,

बीखरकर बात बहती सारी।


हम और तुम मिलन बिन बहता,

वईरहकआ दर्द रहता है थाली।


रंज होता है नाम से थी मरीना,

जीदानी अपनी सरती रहे सारी।


मनरव इसलिए कुछ दिखता,

अपने ही विचार मे अनजाने वाली।


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