पायी हैं।
पायी हैं।
पंछी बन घुमत गगन में,
हरियाली घरा पर छायी हैं।
लहराते तिरंगा सदा ही,
भारत की आजादी छायी हैं।
स्वतंत्र लोक जहां हर जाने,
विकास की गाथा वायी हैं।
विकास की असलियत बाते,
जन मन में कर्म लायी हैं।
मुक्त मने हर नर नारी,
संस्कृति के सत्व में सायी हैं।
शिक्षक किसान और सैनिक,
तन मन से सेवाएं में पायी हैं।
