विविध रंगों का एक भारत भाग 1
विविध रंगों का एक भारत भाग 1
वीर धरा की एक है गाथा
किया मेवाड़ का ऊंचा माथा
त्याग अपना इकलौता कलेजा
आँचल में उदया को सहेजा
उस दिन वीर धरा रोई रे रे
ओ! पन्ना तू माँ है अनोखी रे,
छोटा सा कवर खेले महला
चित्तौड़ का सूरज अलबेला
संकट घड़ी मेवाड़ का राज
विक्रम पर गिरी छल की गाज
उस दिन वीर धरा रोइ रे, रे
ओ! पन्ना तू माँ है अनोखी रे
छोड़ा जग दी पन्ना को ज़िम्मेवारी
सम्भाल यह चित्तौड़ की फुलवारी
निर्दयी बनवीर तड़ित सा है गरजे
तुफानों के बादल ज्यों है बरसे
उस दिन वीर धरा रोई रे, रे
ओ! पन्ना तू माँ है अनोखी रे
पल में आ धमका पापी बनवीर
पूछा पन्ना से कहाँ है उदय वीर
बन पत्थर किया त्याग का वंदन
छुपाया उदय सुलाया वहां चन्दन
उस दिन वीर धरा रोई रे, रे
ओ! पन्ना तू माँ है अनोखी रे
कितने रास्ते भटकी तू,
कुम्भलगढ़ कैसे पहुंची तू
किया मेवाड़ में तूने उजियारा
दिया वीर प्रताप भी प्यारा
उस दिन वीर धरा भी रोई रे, रे
ओ! पन्ना तू माँ है अनोखी रे