राज़ ए गम
राज़ ए गम
गमो के मटके में एक घूँट जब जुड़ी
सोचा पाप का घड़ा अब फुट जाएगा
क्या पता था की दुनिया इतनी बुरी है
यकीन था जो वही धागा टूट जाएगा।।
आखिर हम भी तो वही दिल रखते है
मासूमियत और प्यार जिसमे सहेजते है
जख्म देना तो अब एक दस्तूर है बस
जुबाँ पर प्यार दिल मे छलावा रखते है।।
कहते है कि अपने ही राज को जानते हैं
आज तो हम भी इस बात को मानते है
दिलों में छुपाते भी तो इस कदर है कि
इक विकट मोड़ पर गमो से मिलाते है।।
मुझे पसन्द है दुश्मन भी खुले मैदान में
पीठ पीछे वार दिल का नासूर होता है
उसूल अब तो बस यही बाकी है जहां में
एक साथ बैठना भी अब कसूर होता है।।