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विनोद महर्षि'अप्रिय'

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विनोद महर्षि'अप्रिय'

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हत्यारे

हत्यारे

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जब हुआ जन्म बिटिया का

लाखो ताने सहे दुनिया का


लाड़ प्यार से फिर भी पाला

फूल सा समझे अपना छाला


हुई बड़ी तो पढ़ने जाए

माॅं-बाप का मान बढ़ाये


दहलीज उम्र की वो आये

जब आंगन छोड़ वो जाए


ले बारात दूल्हा चौखट आये

दहेज के लिए फिर वो सताए


उसने कभी कुछ ना कहा

वो आखिर जाए तो कहा


नरभक्षक कभी ना समझे

उसे तो बस निवाला समझे


कभी दहेज के लिए टूटे

कभी जिस्म उसका लुटे


आखिर क्या था उसका कसूर

दिया घाव जो उसको नासूर


क्यों हम मानवता ना जाने

क्यों उसको बस गुलाम जाने


थक गई बेचारी इस जग से

ना लड़ सकी तुझसे हक़ से


कभी पूरी ना हुई उसकी आस

एक दिन मिली फंदे पर लाश!!!



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