ख्वाब
ख्वाब
कुछ ख्वाब यूँ रुलाते है
बनकर घाव तड़पाते है
खोये से रहते है हम यूँ
जब ख्वाब नहीं आते है।
कौन सी दुनिया में है हम
मस्त है फिर मिलते है गम
जानते है गहराई जीवन की
क्यों देखते है ख्वाब हम।
कभी अच्छे लगते है यह
कभी सनकी बन जाते है
कभी बादशाह दिखते है
कभी हमें रंक बना जाते है।
भगमभाग में सोचा नहीं
राह हमने सही चुनी नहीं
बन ख्वाबों के शहजादे
हकीकत हमने देखी नहीं।
उधेड़बुन यूँ चलती रही
मुश्किल फिर बढ़ती रही
जाना था सागर के पार
लहरों में नौका फंसी रही।
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जाना कहाँ था रुके कहाँ
ख्वाबों में हम चले कहाँ
क्यों सपन सुनहरे देखे
लक्ष्य फिर हमें मिले कहाँ।
सोचे जब समय निकल गया
हम किस डगर पर रह गए
पाना था एक सुखद छोर
लेकिन मंजिल से भटक गए।
ख्वाब अक्सर जागते है
दुष्टों को दूर भगाते है
पहचान गलत होती है
समय बीते पछताते है।
काश वो ख्वाब सच होते
जो हमें रोज खुशी देते है
क्यों पहचान नहीं पाते है
जो दरवाजा खटखटाते है ।
गर अभी हम जाग सके
तो लक्ष्य को हम पा जाएंगे
ना खोये विलाशी ख्वाबों में
सुखद जीवन बना पाएंगे।।