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विनोद महर्षि'अप्रिय'

Romance

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विनोद महर्षि'अप्रिय'

Romance

सजनी

सजनी

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सुन ओ सपनों की सजनी

मेरा दिल चुरा लो ना

मेरा दिल चुरा लो ना मुझे

आशिक बना दो ना


सुन ओ सपनों कि सजनी

सपनों में आकर तुम क्या करोगी

सारी रतियां तुम आहें भरोगी

चार दिन की है यह तेरी जवानी


आजा बनजा तू मेरी दीवानी

आवारा सा मैं घूम रहा हूं

मुझे दूल्हा बना दो ना

सुन ओ सपनों की सजनी

मेरा दिल चुरा लो ना


माना कि तू सपनों में खड़ी है

पर मेरे दिल मै जगह भी बड़ी है

सपने बहुत है पर हकीकत नहीं है

अकेला हूं कोई संगदिल नहीं है


तू सम्भाल ले घर बार मेरा

और मुझे पापा बना दो ना

सुन ओ मेरी सजनी

मुझे दिल में बसा लो ना।


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