बुलबुलों संग मस्ती बचपन की याद
बुलबुलों संग मस्ती बचपन की याद
आज मन वापस बच्चा बन जाने को कर रहाहै।
छोटे-छोटे बच्चों को साबुन के पानी के इंद्रधनुषी
बुलबुले बनाते और खुशी से नाचते देख, मेरा मन में नाचने को कर रहा है।
आज मन वापस बच्चा बन जाने को कर रहा है।
किस तरह से हम छोटे- से डिब्बी में साबुन का पानी लेकर
एक कांच की नली से फूंक मार के बुलबुले बनाया करते थे।
और बुलबुल उड़ा कर उनके पीछे दौड़ा करते थे।
उसमें भी आपस में होड़ लगाया करते थे।
किसका बड़ा बुलबुला बनता है और कितना दूर तक जाकर वह फटता है।
क्या जमाना था वह भी इन बुलबुलों के साथ हम भी संगीत की दुनिया में खो जाते थे।
कुछ गुनगुनाते उनके पीछे दौड़ा करते थे।
क्या जमाना था क्या निर्दोष मस्ती हम किया करते थे।
बुलबुलों की दुनिया ही कुछ अलग थी।
आज भी वैसा का वैसा ही है। समय बदल गया है
मगर बच्चों की मस्ती वही है।
छोटे बच्चों को आज भी बुलबुल बनाते देखकर
मन वापस बच्चा बन जाता है।
और बुलबुलों के वही गीत गुनगुनाने लग जाता है।
