मेरी जिंदगी के सफल 71 साल मान के उद्गार
मेरी जिंदगी के सफल 71 साल मान के उद्गार
मेरी जिंदगी के सफल 71 साल मन के उद्गार
यह कहाँ आ गए हम चलते-चलते।
ज़िंदगी के 71 बसंत हमने जी लिए।
कुछ यादों का पिटारा,
कुछ अनुभवों का पिटारा लिए,
अपने प्रियतम के साथ
चलते-चलते हम यहाँ तक पहुँच गए।
ज़िंदगी ने हमको बहुत अनुभव दिए,
बहुत ज़िम्मेदारियाँ और
प्यार भरे रिश्ते दिए।
उन ज़िम्मेदारियों को निभाते हुए,
अपने प्रियतम, बच्चों, दोस्तों
और रिश्तेदारों का प्यार पाते हुए,
इस सुखद मंज़िल को पार कर
हम यहाँ तक पहुँच गए।
सूर्योदय हो गया है,
वह भी हमें संदेश दे रहा है—
तू रोज़ सूर्योदय देख
मुझे नमस्कार करती है,
सबकी सलामती की दुआ माँगती है।
आज देता हूँ तेरे जन्मदिन पर
तुझको यह दुआ
और दिखाता हूँ मैं तुझको राह।
हमको मन की शक्ति दे,
मन विजय करें,
दूसरों की जय से पहले
ख़ुद की जय करें।
यह खाली गाने के लिए नहीं,
हर इंसान के ख़ुद के लिए है—
कम-से-कम उस तरह से करें।
चल जाग मुसाफ़िर, भोर भई,
जो जागत है सो पावत है,
जो सोवत है सो खोवत है।
इसलिए ए विमला,
तू कुछ अपने लिए सोच।
अपना ध्यान रख,
नियमित जीवन, स्वास्थ्य,
अपनी रुचियाँ,
अपना लेखन,
अपने धर्म के प्रति आस्था—
इस सब में ही तेरा कल्याण होगा।
सबके ध्यान के साथ
अपना ध्यान बहुत ज़रूरी है।
तथास्तु।
मैं एकदम से जाग गई,
मेरे मन के चक्षु खुल गए।
सूर्योदय की धूप
मुझे यह सब समझा गई,
ज़िंदगी की राह दिखा गई।
इस सब पर अमल करते हुए
करती हूँ मैं
ईश्वर से हाथ जोड़ प्रार्थना—
आपने इतना प्यारा जीवन-साथी,
इतना प्यारा परिवार दिया,
इतना संस्कारशील परिवार दिया।
माँ-बाप के संस्कारों को दीपाते हुए
अपनी ज़िंदगी के 71 साल
तो मैं जी लिए हैं।
अब यह प्रार्थना मेरी आपसे—
यह साथ कभी न छूटे।
ज़िंदगी में जब तक हम जिएँ,
शान से जिएँ,
और मरे तो भी शान से मरें।
कभी किसी से
एक गिलास पानी भी
ना माँगना पड़े।
ईश्वर, हम पर दया करना
और ऐसा स्वास्थ्य देना,
ध्यान रखने की राह दिखाना।
प्रीतम का साथ
हमेशा रखना।
मेरे जाने के बाद भी
मेरे लेखन का लाभ
लाभ जाग उठे,
इसी बहाने
हमें याद कर जाए।
क्योंकि इंसान के काम में
मदद का स्वभाव—
यही खुशबू रहती है
उसके जाने के बाद।
यह है मेरे मन के उद्गार,
जो मेरी दिल से निकली आवाज़ है।
ज़िंदगी के 71 सालों के लिए
ईश्वर, आपका धन्यवाद है।
साथ में परिवारजनों का धन्यवाद है,
जिन्होंने मेरा जीवन
इतना सफल और सुंदर बनाया।
उनके साथ के बिना
और ईश्वर की इच्छा के बिना
यह सब कभी संभव न होता।
