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Arun kumar Singh

Abstract Action Inspirational

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Arun kumar Singh

Abstract Action Inspirational

आव्हान

आव्हान

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ओ वीर तुम क्यों बादलों के झुरमुटों में हो छिपे

देखो दो टके के कायरों की विजय गाथा हो रही

जब युगों पहले छोड़ रण को भागे थे हे वीर तुम

तब से दोगले परजीवीयों की जय पताका हो रही


होता सम्मान से अवसान जो की वीर की होती गति

अरे यह कहाँ अपमान पीते मूक सहते दुर्गति

ओट में यूँ हो छिपे तुम चोट क्यों करते नहीं

देखो बिन प्रतिकार के अपनी पराजय हो रही


समर यह संसार का है वार विपदा से भरा

क्या था सोचा वीर की पग पुष्प पड़ता सर्वदा

बस कर दी होती गर्जना शृगाल दल जाते बिदक

अब सियार को मूक सिंह की लहु पिपासा हो रही


कराहती वियोग से विलाप करती यह धरा

आओ साहसी अब लौट भी पुकारती वसुंधरा

लुप्त न हो जाए इस जग में जो भी शेष है

है महा संहार के आने की आहट हो रही


पहले नाश कर दो शत्रु का जो छिपा खुद तुम में है

दो त्याग भीरु वेश कि क्षण है हलाहल पान का

तम दीप्त करके शौर्य से लो उर में अपने भर अनल

अब दावानल में कूदने की है तैयारी हो रही


हे शत्रु सुन तब बादलों में सूर्य छिप न पायेगा

तब यूँ तपेगा तेज से रण होगा यूँ रिपु दमन

सुत धरा का जब जगेगा कुम्भकर्णी नींद से

तब शेष समझो रात सूर्योदय की बेला हो रही


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