साँझ
साँझ
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यह साँझ का अंधेरा
उसपे चाँदनी का डेरा
पंछी सा उड़ना चाहे
मन बाँवरा सा मेरा
इच्छा है मेरे मन में
तारों के उस उपवन में
चक्षु सुधा को पीने
निष्छंद मैं विहारुँ
तरुवर की चोटी पर से
मैं चन्द्रमा निहारुँ
तरुवर की चोटी पर से
मैं चन्द्रमा निहारुँ...
वियोग से मैं घर के
मैं सोचता वियोगी
मेरे ग्राम की भी आभा
इसी चंद्रिका से होगी
सुनसान सी गली मे
झींगुर की तान होगी
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पोखर मे शोभीत पद्मा
हर मन को भायी होगी
होगी गुँजती कोई लोरी
बेसुध जम्हाई होगी
होगी गुँजती कोई लोरी
बेसुध जम्हाई होगी...
पर कहाँ मोरी निंदीया
मेरे नैना रातें जागी
प्रिय मिलन को तड़पता
प्रेयसी का अनुरागी
केवल मेरे हृदय पर
उसका ही है बसेरा
यह साँझ का अंधेरा
उसपे चाँदनी का डेरा
पंछी सा उड़ना चाहे
मन बाँवरा सा मेरा
पंछी सा उड़ना चाहे
मन बाँवरा सा मेरा...