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Arun kumar Singh

Romance

4  

Arun kumar Singh

Romance

दिल्लगी

दिल्लगी

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मुश्किल ये नहीं है, कि हमें डर है, ठुकराए जाने का

डर ये है, इज़हार से हक खो न दें, दीदार पाने का ।।


बहार आई नहीं मेरे दिले गुलशन, ये अरमाँ सूख जाएंगे

कोई बस इतना बतला दे हमें, वो कब खिड़की पे आएंगे ।।


शहर में रौनक आती है, जब सँवरकर, तुम निकलती हो 

कत्ल आशिक होते हैं, बड़े अंदाज से, जब मुस्कुराती हो ।।


लोग कहते हैं सब, कि इश्क जरिया है, बरबादी पाने का 

पर उन्हें क्या पता, इश्क वो दरिया है, मजा है डुब जाने का ।।


नशे में मैं भी हूँ, और तुम भी हो, और है ये दुनिया भी

न क्यों मयखाना कहलाए, अभी से अब ये दुनिया भी ।।


कातिल निगाहों से जलाना, शोलों से तो यारी है अपनी

जुनूने इश्क जब से सर चढ़ा है, मोहब्बत शायरी अपनी ।।


हर मर्तबा क्या है जरूरी, इश्क में, जिस्मों का ही टकराना 

इश्क था वो भी, वो उनका दूर से दिखना, और उस पर वो शर्माना ।।


आज वक्त देखकर, मिजाज बदल रहे हो, पर याद रखना

मोहब्बत मोहताज नहीं वक्त और मिजाज की, याद रखना ।।


जाने कैसे हैं वो लोग कि जिनको प्यार समझ नहीं आता

ये तराना दिल का है, इसे तो सोचकर किया ही नहीं जाता ।।


उम्र गुजर ही जाती है, नावाकिफ हाले दिल रहकर

जो वाकिफ हो गये दिल से, कटे हर लम्हा रुक रुक कर ।।


जो तुम संग हो, फिर खुशियों में खलल की मेरे, 

वैसे कोई वजह तो नहीं

पर मेरी बेख्याली पे तेरा गुस्सा, डर लगता है, कहीं आज शादी की सालगिरह तो नहीं ।।


वो शायर हैं जो जीते दर्द को अपने, और फिर, शायरी में बयां करते हैं

और वो आशिक हैं, बस एक मुस्कान पे खुद को, जो भूल जाया करते हैं ।।


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