मातृ भूमी
मातृ भूमी
तेरे चरणों में शीश झुकाते है
है मातृ भूमि तुझे प्रणाम
तेरे मस्तक पर अपने रक्त
तिलक लगाएंगे
यदि शत्रु आंख दिखाए
उसके ही रक्त से अभिषेक
तेरा हम करते है
जननी ने जन्म दिया
छोड़ दिया तेरे आँचल में
तू जननी जन्म भूमि है
तेरी मर्यादा की रक्षा में
तेरी हम संतान शीश चढ़ाते है।।
तेरे ही वर्तमान का तेरा हम
अभिमान अतीत के अपमानों
से तुझे मूक कर आज तेरी
पीड़ा वेदना का हिसाब चुकाते है
तेरी मर्यादा में ना जाने
अतीत में तेरी संतानों ने
बलिदान दिया उनके बलिदान
उद्देश्य पथ को पथ अपना बनाते है
बर्बरता क्रूरता ने रौंदा था तुझको
आज काल की पुकार में उनको
सबक सिखाते है।।
संकुचित सोच के तुच्छ
मनुज ने ही तेरे टुकड़े कर
डाले शायद उनको पता नहीं
तेरी वेदना का आज फिर वही
ताकते तुझे कर रही फिर से
लज्जित लेकर धर्म निर्पेक्षता की
आड़ करते नंगा नाच
आस्तीन में छुपे सांपों को
अस्तित्व पराक्रम पुरुषार्थ की
बीन पर उन्हें नचाते है।
सर तेरा अब ना झुकने देंगे
मान तेरा ना मिटने देंगे
चाहे जो भी हो काल परिस्थिति
तेरी अक्षुण्ण अक्षय मर्यादा को
फिर अब हम ना मिटने देंगे।।