क्योंकि मैं फूल हूँ
क्योंकि मैं फूल हूँ
पुष्प की पीड़ा
क्योंकि मैं फूल हूंँ ?
कैसे व्यथा सुनाऊं नाथ
राहों में कुचला जाता हूंँ।
कांटो में लिपटा रहता हूंँ
फिर भी लोगों की शोभा
बढ़ाता हूंँ।
फिर भी लोगों के पैरो तले
रौदा जाऊं।
क्योंकि मैं फूल हूँ ?
मेरा जीवन कब तक सार्थक
होगा बताओ नाथ ?
मेरी भावना यह मनुष्य नहीं
समझते नाथ ?
तोड़ तोड़ हमें पथ पे फेंक
देते।
तब भी हम इनके गले लग
शोभा बढ़ाते।
कैसे अपना हाल ए जिक्र
सुनाऊं नाथ।
प्रेम की मैं अभिव्यक्ति हूंँ
दो प्यार करने वालों की
एक युक्ति हूँ।
फिर भी कांटो में बस्ती हूं
क्योंकि मैं एक फूल हूंँ ?
बहुत दुख होता है
जब मनुष्य में भेद भाव मैं
देखता हूंँ।
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छुआछूत की भावना
लोगों में व्याप्त देखते
रहता हूंँ।
आज बहुत व्याकुल हूंँ नाथ ?
मनुष्य मे मै भेद ना करती हूँ
इनका दिया हुआ दुख बिन
बोले ही सहती हूंँ ?
कभी किसी जीवित तो कभी
किसी मृत शरीर पर मै चढ़ती
हूँ।
मैं लोगों के तन मन को मै
पुलकित कर जाती हूँ
मैं लोगों की शोभा बढ़ाती ?
बदले में मैं कुछ ना मांग पाती
फूल बन के घर आंगन बगिया
महकाऊँ।
मनुष्य के जीवन में साज सजाऊं
अपनी जिंदगी कांटों से संग
बिताऊं।
क्योंकि मैं फूल हूंँ ?
लोगों के जीवन में मैं प्यार से
सजाती हूँ।
लोगो के गले में मैं माला बन
जाती हूँ।
खुद में लोगो के लिए प्राण वारी
जाऊं।
फिर भी जीवन भर अपना शीश
झुकाऊं
क्यूकि मैं फूल हूंँ ?