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हरि शंकर गोयल "श्री हरि"

Comedy Romance Fantasy

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हरि शंकर गोयल "श्री हरि"

Comedy Romance Fantasy

खोई हवाऐं

खोई हवाऐं

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विरह की आग में सूरज झुलसा जा रहा है 

खुद भी जल रहा है और हमें भी जला रहा है 


पसीने से तर बतर बदन सांसें उखड़ी हुई हैं 

तिस पर बैरन हवा न जाने कहां जकड़ी हुई है 


लगता है हवा अपने प्रेमी की बांहों में सोई हुई है 

इश्क में मदहोश है मीठे सपनों में खोई हुई है 


इश्क बड़ी बीमारी है सब कुछ भुला देती है 

मरुस्थल से दिलों में भी गुलशन खिला देती है 


मौसम के अंदाज ने हवा का दिल चुरा लिया 

चंचल शोख हवा को अपना दीवाना बना लिया 


दुनिया से दूर कहीं किसी वादी में खोये हैं दोनों 

इश्क को अपने अंजाम तक ले जा रहे हैं दोनों।


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