कंजूसी की हद हो गई...!!!
कंजूसी की हद हो गई...!!!
क्या लेकर जाओगे
तुम अपने साथ,
जो इतनी कंजूसी से
अपना और अपने
परिवारवालों का
पेट पालते हो...?
किस धुन में
मग्न हो तुम
जो इस हद तक
कंजूसी पे
उतर जाते हो...?
क्या तुम सोचते हो
कि पेट को कष्ट देकर
कोई बड़ा काम करोगे...??
बिल्कुल नहीं !!!
बल्कि तुम
अपने साथ-साथ
अपने अपनों का भी
दिल तोड़ देते हो !
यूँ मुँह फुलाए
क्यों खड़े रहते हो,
जब कोई अतिथि
तुम्हारे घर के दरवाज़े पर
आ जाए...?
तुम लोग शायद
मन-ही-मन कहते फिरते हो --
"अतिथि, तुम कब जाओगे...???"
पहले दिन तो जैसे-तैसे
थाली में थोड़ी खास
खाद्यान्न परोसते हो...
फिर अगले ही दिन
तुम्हारे भोजनकक्ष में
अकाल-सा पड़ जाता है...!!
हाय !!! तुम्हारी कंजूसी की हद हो गई...
ऐसे कैसे ओछेपन पर उतर आते हो...???
अरे, ओ कंजूस महाशय !
ज़रा शर्म करो...
थोड़ा ठहर जाओ...
अब तो सुधर जाओ...!!!
क्या जमापूँजी है तुम्हारी,
जो तुम दिनरात बस अपनी
जेबें टटोलते रहते हो...?
रात को बिस्तर पर भी
अपने खर्चे पर ही
माथापच्ची करते-करते
व्यर्थ समय व्यतित करते हो...
देखो अपनी रोनी सूरत
अपने दिल के आईने में...
बेशक़ तुम जान जाओगे कि
क्या से क्या बन गए हो तुम
इस कंजूसी की आदत से...!