माॅनसून से डर नहीं लगता साहब
माॅनसून से डर नहीं लगता साहब
माॅनसून से डर नहीं लगता साहब,फरमाईशों से लगता है,
बारिश हो ना हो, घरवालों के पकौड़ौ के आलाप पर, मेरा दिल धड़कने लगता है।
बरसने से पहले ही कांदे की ,अहमियत बड़ जाती है,
किचन में उमस के पसीने से भरी चुनरी और कहर बरपाती है।
कही बेसन घुल-मिल कर सब्जियों संग बना रहा होता अपनी अलग पहचान,
कही हरी -हरी मिर्च के पकौड़े, कर रहे होते है खुद पर गुमान।
हम सोचते है ,बारिश का मौसम है आराम फरमाया जाये,
लेकिन साहब की ख्वाहिशों का क्या करे?
बूंदो के गिरते ही कहते है भागवान क्यों ना ?दोस्तों को चाय पार्टी पर बुलाया जाये,
ख्वाब तो है हमारे ,बारिश में भीगते हुए लाॅन्ग ड्राइव पर जाने के,
चाहा क्या ?क्या मिला ?यही गाना सुनकर गरम गरम पकौड़े बनाते हैं,
रोमांस,पहले प्यार की पहली बारिश,लाॅन्ग ड्राइव, सब बकवास बाते हैं
हमसफर के वादो में है कितनी सच्चाई ,ये तो माॅनसून के गरजते बादल बताते हैं।