STORYMIRROR

हरि शंकर गोयल "श्री हरि"

Comedy Classics Fantasy

4  

हरि शंकर गोयल "श्री हरि"

Comedy Classics Fantasy

चांदनी

चांदनी

1 min
4

इश्क की चांदनी में नहाने लगा हूं 

ख्वाब सुहाने अब सजाने लगा हूं 

तेरी शर्मीली आंखें भी कह रही हैं 

कि मैं तेरे दिल में समाने लगा हूं।


चांदनी में भीगकर इश्क और भारी हो गया है 

चाहत का सिरहाना बनाके ख्वाबों पे सो गया है 

दबे पांव आना ख्वाबों में नहीं तो ये टूट जायेंगे 

मेरा दिल दीवाना तेरे प्यार में पागल हो गया है।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Comedy