उफ्फ्फ ये बीवी
उफ्फ्फ ये बीवी
सब झुक जाए मेरे सामने पर
मैं बीवी के कदमों में झुकता हूँ
वो चलने को कहे तो चलूँ और
रूकने को कहें तो मैं रूकता हूँ।
आंखें चार कर लूँ पड़ोसन से
पर वो आंख मिलाए तो डरता हूँ
लोग मेरी हां हुजूरी करें और
मैं उसकी जी हूजूरी करता हूँ।
कल ही अभी कह रहीं थी कि,
गृह लक्ष्मी हूँ मेरा भी सम्मान करों
ज्यादा कुछ नहीं चाहिए बस,
अपना ए टी एम कार्ड ही दान करो।
डर क्या होता है ये जाना हमने,
जबसे उससे मेरा पाला पड़ा।
और बीवी-बीवी करते करते,
मेरे मुहँ में छाला पड़ा।
मजदूर दिवस के नाम पर,
पैर अपने दबवाती है।
खाना खिलाए प्यार से पर,
वो भी मुझसे ही बनवाती है।
दिल में भले रहती हैं पर,
प्यार कम है ऐसा कहती हैं।
पगली प्यार है तभी तो,
तेरे सारे नखरे झेलता हूँ।
बूढ़ा हो गया मैं भले ही,
जुल्फों से अब तक खेलता हूँ।
फिर कहने लगी प्यार है तो,
चलो इस बात को मत टालो।
सोने का तो नहीं बस,
हीरे का एक हार बनवा डालों।
कहने को क्या कहे भाइयों,
जो कहें सब कुछ कम हैं।
बीवी ही है खुशी और
ये बीवी ही मेरा गम है।
वैसे पतियों में भी कहाँ,
छिपी बड़ी शराफत हैं।
उफ्फ ये बीवी तो,
बनी ही एक आफत है।
