चाचा पीछे पीछे हम आगे आगे
चाचा पीछे पीछे हम आगे आगे
एक दिन दोस्तो की मस्ती ज़ोरों पर थी,
हमारे मन की तितली भी खुशी के घोड़ों पर थी।
अचानक एक बुज़ुर्ग को देख परेशां,
हम दोस्तों की टोली भी पहुँच गई वहाँ।
मैंने पूछ लिया परेशानी का सबब,
क्या हुआ, क्यों हुआ, कैसे हुआ, हुआ कब।
बुज़ुर्ग चाचा पहले ही परेशान थे,
और हम यार दोस्त हद से ज्यादा नादान थे।
एक साथ सौ सवाल पूछ डाले परेशां इंसान से,
उन्होंने घूर के ऐसे देखा मानों गए हम जान से।
फिर भी हमने हिम्मत की,
कहा - चाचा बताते क्यों नहीं।
चाचा बोले, आजकल के बच्चे पहले ही बददिमाग है,
आता जाता कुछ नहीं बस भरी हुई आग है।
मैंने कहा, चाचा समस्या तो बताओ,
चाचा ने कान खींच कर कहा-यहाँ से जाओ।
हमने बात संभाली -
कहा क्या पता कुछ हल निकल आए,
चाचा ने ऐसा जलाया आँखों से,
जैसे उनके हिस्से का गंगाजल निगल आए।
काफी देर बाद सन्नाटा खत्म हुआ,
जवाब कोई न मिला बस वहम खत्म हुआ।
चाचा ने दी फटकार बोले नजर न आना,
परेशान हो कोई तो न सवालों से सताना।
निकल जाओ यहाँ से इससे पहले कि गुस्सा जागे,
फिर चाचा पीछे पीछे और हम आगे आगे।