पाया वसंत
पाया वसंत
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बिटिया की ज़िद थी
चलो बगिया देखने चलें।
थोड़ा घुमा लाओ बाबा
चलो न, मित्र मंडली से मिलें।।
दफ्तर से घर आकर
तन मन में आलस छा जाए।
बिटिया को कैसे समझाऊँ
किसी और दिन का विचार बनाए।।
बिटिया की ज़िद ठहरी
चल पड़े उपवन।
खिल उठा खिले फूलों को देख
कई दिनों से खिन्न मन।।
पीले, गुलाबी, लाल फूलों की सुगंध
बहने लगी मदभरी बयार।
हरे पात गाए गीत
भंवर और कली का प्यार।।
बिटिया का आभार
जो उसने ये अहसास दिलाया।
कई वर्षों से हर ऋतु खोई
इस वर्ष वसंत को पाया।।