बावले मन के कातिल
बावले मन के कातिल
1 min
135
मेरे सपनों को कुचल कर
कहते हो रोती हो क्यों।
मेरे अरमानों को मसलकर
कहते हो उम्मीद खोती हो क्यों।।
तुम्हें प्यार बहुत करता हूँ
तुम्हें चाहता बहुत हूँ।
तुम्हारी कद्र है मुझे
तुम्हारे हुनर को सराहता बहुत हूँ।।
कैसा तुम्हारा प्यार है?
मैं पल पल टूटती हूँ ,तुम्हे खबर नहीं होती।
मेरे सपने और अरमान मर रहे हैं,
तुम्हारे प्रेमी ह्रदय को फिक्र नहीं होती।।
सच कहूँ तुम नहीं समझोगे,
क्योंकि तुमने मेरे सपनों को खत्म किया है,
मेरे सपने देखने वाले
बावले से मन का तुमने ही कत्ल किया है।।
