STORYMIRROR

Pooja Yadav

Abstract

3  

Pooja Yadav

Abstract

वसंती धरा

वसंती धरा

1 min
301

धरती आज सजी दुल्हन सी

फूलों से श्रृंगार किया

हवा की चादर को झड़का कर

खुशबू का उपहार दिया।


स्वर्ण आभूषण जैसे दिखते

देखो मतवाले पीत पुष्प,

हर कण धरती का रसभरा,

नहीं रहा कोई कोना शुष्क।


अम्बर भी मतवाला होकर

धरती को ही झांके है,

वसंत ने ऐसा रूप सजाया

अम्बर धरती को ही ताके है।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract