वसंती धरा
वसंती धरा
धरती आज सजी दुल्हन सी
फूलों से श्रृंगार किया
हवा की चादर को झड़का कर
खुशबू का उपहार दिया।
स्वर्ण आभूषण जैसे दिखते
देखो मतवाले पीत पुष्प,
हर कण धरती का रसभरा,
नहीं रहा कोई कोना शुष्क।
अम्बर भी मतवाला होकर
धरती को ही झांके है,
वसंत ने ऐसा रूप सजाया
अम्बर धरती को ही ताके है।