तुम्हारा बेईमान बटुआ
तुम्हारा बेईमान बटुआ
तुम्हारे बटुए से पैसे निकालने का,
मजा ही कुछ और हैं
मैं आज लाख पैसे कमाने लगी हूं,
तब भी तुम्हें चिढ़ाने का, मजा ही कुछ और हैं
सुबह ड्यूटी जाने की हड़बड़ी में,
अनगिनत गड़बड़ियां तुम करते हो
कभी रुमाल लेना भूल जाते हो,
तो कभी बिना मोजे के जूते पहनते हो
और किसी नादान बच्चे की तरह,
मुझसे ही कुछ पैसे उधार लेते हो
शाम तक लौटा दूँगा ऐसा कहते हो
और हंसकर इतना जरूर बोलते हो
ना जाने कौन जालिम बटुआ मार गया !
तुम्हारे इतना बोलने पर, मैं गुस्से से देखती हूं,
मग़र तुम्हारे ड्यूटी जाते ही, खूब हंसा करती हूं
शायद यही हमारे प्यार की निशानी है
और इस प्यार का मजा ही कुछ और है।
हां आज मैं कमाने लगी हूं
आज मेरे पास पैसे की कमी नहीं है
आज मैं किसी पर आश्रित नहीं हूं
लेकिन तब भी मेरा दिल,
तुम्हारे दिल पर आश्रित है
आज भी मैं किसी रुकमणी-सी,
अपने कान्हा पर आश्रित हूँ !
आज भी जब मैं दुनियादारी से थक जाती हूं
तो तुम्हारे दिल के घोंसले में ही आश्रय लेती हूं
अगर मेरा पैसा दिन का चकाचौंध है ,
तो रात की खामोशी का घोंसला तुम हो
जहां मैं सुकून से खुद को परिपूर्ण समझती हूं !
तुम्हारे बटुए से निकाला गया पैसा
मेरे लिए शगुन हैं, यह सुहाग की निशानी है
जिसे मैं कभी खोना नहीं चाहती हूँ ;
मैं हमेशा ऐसे ही तुम्हें परेशान करती रहूंगी
तुम्हारे साथ ऐसे ही हँसती-गाती रहूंगी
तुम्हें चिढ़ाने का मजा ही कुछ और हैं !