पति पत्नी और चाय
पति पत्नी और चाय
पतिदेव को मैने सुबह सबेरे बड़े प्यार से उठाया।
मेरे प्यारे चेहरे को अनदेखा कर,
उन्होंने चाय के लिये हाथ आगे बढ़ाया।
मैंने भी हाथ में अखबार अकेला पकड़ाया।
चाय दिवस है आज बड़े प्यार से ये बतलाया।
"तो मैं क्या करूँ"? घूरती आँखों में ये सवाल अब आया।
मैंने भी चिकनी चुपड़ी बातों से उन्हें बहलाया।
आज इस स्पेशल दिन पर कुछ स्पेशल हो जाये।
जैसे शादी से पहले मैं आपके लिये चाय लाई थी,
वैसे ही अब आप भी लेकर आये।
तब मैं थी जैसी डरी हुई,
अब आप भी वैसे डर के दिखलाये।
न डरे वो, न चाय बनाई,
बस घुटनों पर बैठ उन्होंने सर झुका दिया।
हाय!! उनकी इस अदा ने मेरा दिल चुरा लिया।
गई दौड़ रसोई में मैं चाय खुद से ही बना लाई।
और साथ में इस स्पेशल दिन पर
भजिये पकौड़ी भी तल लाई।
ले स्वाद भजिये का वो अब वो मंद मंद मुस्काये।
एक प्याला चाय और भी मिलेगी
जरा से होंठ फड़फड़ाये।
श्रीमती जी की चाय पीकर जैसे
बुद्धि ताजा हो गई थी।
पतिदेव की चालाकी अब वे पर्दा हो गई थी।
पतिदेव ने तब पत्नी को गले से अपने लगाया।
तेरी चाय के बिना में अधूरा हूँ
ये अपनी अपनी आँखों से जतलाया।
जिस तरह चाय में अदरक बिन कोई स्वाद नहीं आता
मेरा भी जीवन नीरस है तुम बिन
ये श्रीमती जी को बतलाया ।
श्रीमती और श्रीमान की जोड़ी न कोई बनती।
एक दूसरे को परखने जो चाय पर मुलाकात न होती।

