इश्क बुरी बला
इश्क बुरी बला
एक संस्था के प्रबंधक हमारे बहुत ही खास है,
यानी की है तो मित्र, पर रहते बहुत उदास है,
हमने उनकी उदासी का कारण पूछा,
यह पूछना ही हमारे लिए हो गया भारी,
धीरे धीरे सुनाने लगे अपने दुखड़े,
फिर खोल दी दुखिया जीवन की पिटारी,
एक एक कर सुनाई अपनी कहानी
सुखी जीवन में लगी थी इश्क की बीमारी
कहने लगे जीते जी यह जीवन नरक बन गया है,
जब से एक नहीं दो औरतों से पाला पड़ गया है,
वैसे तो किसी से हमारी आंखें कभी नहीं लड़ी थी,
परन्तु न जाने कैसे यह आफत गले पड़ी थी,
कभी कभी कर दिया करता था संस्था में उनका सहयोग,
बस यहीं से ही लग गया यह इश्क का रोग
अब वो दोनों ही हमने प्यार करती है,
साथ जीने मरने की बात करती है,
मिलने से मना करें तो दोनों आकर लड़ती है,
इन घटनाओं से हमारे दिल की धड़कन बढ़ती है,
इसलिए हम उदास रहते है,
अपनी बीती किसी से नहीं कहते हैं,
हम तो संस्था चलाकर करते है सभी को सहयोग,
न जाने कैसे बन गया, इन नारियों से प्यार का योग,
न तो हम प्यार का नाटक करते है,
न ही किसी से सच्चा प्यार करते है,
हम तो सीधे सादे इंसान है,
संस्था चलाकर अपना पेट भरते है,