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Gopal Agrawal

Classics

4  

Gopal Agrawal

Classics

क्या मैं लायक हूं...

क्या मैं लायक हूं...

2 mins
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बूढ़े बाप को एक बात,

आज तक समझ नहीं आई,

कि वो दिल का टुकड़ा,

मतलब कि पाला पोसा बेटा

जिसे खून से सींच कर,

लायक बनाने की कोशिश की थी,

क्या वो बुढ़ापे वाला लायक बेटा है,

या फिर जमाने की हवा के साथ,

इतना लायक बन गया कि,

अपने काम को ही दुनिया समझने लगा,

परिवार की जिम्मेदारी से दूर हटने लगा,

उसके इस बर्ताब पर ,

कमजोर होती बूढ़ी नजरें,

अब यह तलाश करने लगी कि,

आखिर उसे लायक बनाने में,

उस समय कौन सी कमी रह गई,

जो उसके सीचें गए इस पौधे को,

संस्कारी नहीं बना पाया,

कौन से खाद व पानी ने,

उसकी जमीन को बंजर,

और बेेटे को फल हीन कर दिया है,

बहुत सोचने समझने के बाद,

आखिर कार बूढ़ी आंखो ने

जब अपनी पहले वाली दुनिया देखी,

तो अहसास हुआ कि,

किसी समय में मैनें भी तो यही किया था,

अपने पिता को उस समय छोड़कर,

कैरियर बनाने के लिए आया था,

जब उनको मेरी जरूरत होती थी,

उनका भी दिल दुखाया था,

बुढ़ापे में साथ नहीं निभाया था,

बहुत बुरी तरह तड़पाया था,

लगता उसी का परिणाम भोग रहा हूं,

बूढ़े की सफेदी यह सोचते हुए,

कहती है कि कभी कभी,

एक ख्याल मन में आता है,

मैं लायक था कि नालायक,

मन से उत्तर आता है कि,

मैैं ही नालायक था,

मेरे पिता ने तो बहुत ही लायक बनाया था,

लेकिन जमाने की हवा,

और कुछ करके दिखाने के जूनून ने,

इतना बदल दिया कि,

न में बाप की नजर में लायक बन पाया,

दौड़ भाग करते करते,

न ही बेटे को लायक बना पाया,

और जीवन के अंतिम दौर में,

अब नालायक ही बना हुआ हूं।


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