अंदाज अपना अपना...
अंदाज अपना अपना...
जाने क्यों लोगों का अब मिजाज बदलने लगा है,
लगता है उनके जीने का अंदाज बदलने लगा है,
पहले तो वो ऐसे न थे कि हमको पहचाने ही नहीं,
शायद जमाने के सुर के साथ साज बदलने लगा है,
जाने क्यों लोगों का अब मिजाज बदलने लगा है,
ऐसा लगता है जीने का अंदाज बदलने लगा है,
किसी समय में हम जैसा गाते, वो वैसे बजा लाते थे,
मामूली से समझाने पर समझते या समझा जाते थे,
लेकिन जब से उन्होनें मिजाज का साथ क्या पकड़ा,
अब मिलने के सासे पड़ गए उनसे,
जो कभी सुनते ही दौड़े चले आते थे,
इस बदलते मिजाज पर यह सोच रहा है राही,
पहले के लोग कैसे,
दूसरों का हुकुम बजा लाते थे,
अब परिवार से मिलना तो दूर,
प्रेम से बुलाने पर भी भाग जाते है,
इसे ही तो कहते है,
खुद बदल जाओं लेकिन अपने अंदाज मत बदलों,
तुम्हारी पहचान तुम खुद नहीं,
तुम्हारे मिजाज और अंदाज है,
यहीं तो जमाने के वो साज है,
जिसे देखकर लोग बजने लगते है,
दूसरे भी अपने लगने लगते है,
जिसने मिजाज को समझ लिया,
उसके लिए बहुत बड़ा राज है।