Gopal Agrawal

Others

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मन से जहरीले क्यों.....

मन से जहरीले क्यों.....

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रंगो के अपना अपना पैमाना है,

जिसको जैसा पंसद आया, उसने वैसा माना है,

रंगो का अपना अपना पैमाना है,

जब कलाकार हाथ में कूची होती है तो,

उसकी कल्पना का हर कोई रंग खरा होता है,

उसके बनाए चित्र में जहर का रंग हरा होता है,

भगवान जब विष का प्याला पीते है,

उसके बाद भक्त उन्हे नीलकंठ कहते है,

मतलब तो इसका यही आता है,

जहर पीने के बाद,रंग बदल जाता है,

जो जहर पी लेता वो नीला हो जाता है,

ये रंग परिवर्तन क्या से क्या हो जाता है,

सुना है कि हरियाली अपनाने से जहर छंटता है,

उधर कहावत है सावन के अंधे को हरा हरा दिखता है,

अब क्या सही है क्या गलत है लेकिन

अभी भी चित्रों में जहर का रंग हरा ही दिखता है,

ेआखिर हकीकत में जहर का रंग कैसा होता है,

और जो लोगो के मन में भरा है, वो जहर कैसा होता है,

क्या वो भी कल्पना की तरह हरा होता है,

या फिर काला नीला या पनीला होता है,

मन तो कहता है कैसा भी हो लेकिन,

दिल वाला जहर बहुत ही विषैला होता है,

कोई भी जहर पीने के बाद उसका इलाज हो जाता है,

मन के विष वमन जो डंक लगा, वो चुभ जाता है,

वो भयंकर, विकाराल जहरीली बाते सुनने के बाद,

वो आदमी जिन्दा होकर भी सो जाता है,

यही नहीं मनरूपी विष वमन का प्रभाव होता है कि,

उसके अंदर भी जहर पैदा हो जाता है,

जो कभी खरा हुआ करता था,

वो इंसान उस विषवमन से हरा हो जाता है,

फिर उसके लिए कोई कूची की जरूरत नहीं पड़ती,

न ही उसकी उम्मीदे जीने के लिए बढ़ती,

वो तो उस दिन के लिए जीता है,

उस विषवमन का जहर बार बार पीता है,

कब मौका मिले तो मैं भी उस विषवमन धर पर,

ऐसा जोरदार विष वमन करूं,

जिन्दा रहते उसका अधमरण करूं,

जिसने बिना मांगे जहर का प्रभाव बताया था,

जिन्दगी के अनमोल पलो को दूर भगाया था,

मैं विषवमन करने के बाद रहूंगा खरा का खरा,

जहर का रंग कैसा भी हो,

काला नीला या पनीला,

रिश्तो में मन का विषवमन बहुत देखा जाता है,

पता नहीं प्रेम टूटते ही, मन में जहर क्यों भर जाता है।



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