तुम पाॅजेटिव हो...
तुम पाॅजेटिव हो...
एक मित्र से हमने कहा,
यार, क्या फालतू ही घूमते रहते हो,
हर जगह पर निराशा फैलाते रहते हो,
कभी कुछ अच्छा काम किया करो,
लोग तुम्हें तुम्हारे कामों को याद करेंगे,
दोस्त ने हमारी बातों को सुना,
और लोगों की निराशा दूर करने के लिए,
जनता से मिलना शुरू किया,
धीरे धीरे वो लोगों की निराशा को दूर करने लगे,
नकारात्मकता भगा आशा का संचार करने लगे,
लोगों से संपर्क करते हुए पता ही नहीं चला,
हाथ मिलाते मिलाते कब वो पाॅजेटिव हो गए,
वो मित्र पाजेटिव क्या हुए,
लोग उनको नकारात्मक रूप में देखने लगे,
कहने लगे पहले नेगेटिव हो जाओ, तब आना,
मित्र बोले तुम्ही कहते हो पाॅजेटिव रहो,
अब क्यों कह रहे हो नेगेटिव हो जाओ,
तुम्हारा यह रूप समझ नहीं आता,
बदला जमाना हमको नहीं भाता,
अरे हम पाॅजेटिव क्या हुए,
तुमने अपनी सोच नेगेटिव बना ली,
यह कौन सी विचार धारा अपना ली,
अरे, लोग कहते है हमेशा पाॅजेटिव रहो,
और तुम कह रहे हो, नेगेटिव बनो,
हमने कहा ये विचारधारा की बात नहीं है,
ये तो महामारी की धारा चल रही है,
पाॅजेटिव के प्रति सोच बदल रही है,
अब पाॅजेटिव वालों से दूर रहने को कहते है,
लोग नजरिया कैसे बदल लेते है,
कलियुग इसे ही कहते है।