DR ARUN KUMAR SHASTRI

Comedy

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DR ARUN KUMAR SHASTRI

Comedy

मज़लूम

मज़लूम

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मिरा दर्द तूने पढ़ लिया होगा 

जख्म गहरा है ये समझ लिया होगा। 


जुबां से कहने में हिचकिचाहट है 

हाथ का लिखा है पट्टी पर देख लिया होगा। 


मज़लूम हूँ मैं इस मुल्क़ का 

कहे तो पहचान पत्र दिखला दूँ। 


गुजारिश है विनम्रता से भरी 

सोचा लिख के तुमको समझा दूँ। 


वक़्त नाज़ुक है घड़ी मुसीबत की 

क्या पता क्या हो जाये जाने अनजाने में। 


बाद पछताने के किसको क्या मिलेगा 

मुझे जो लग गया डंडा तो तशरीफ़ छिलेगा। 


कसम है तुमको सविधान की, पुलिस वालो 

एक डंडा भी न मारना किसी अनजान को। 


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