फूफा
फूफा
एक दिन दूल्हा बन आया था मैं,
सब के दिलों पर छाया था मैं
सालियों का दुलारा
सास ससुर का प्यारा।
कैसा तन के चलता था ,
छप्पन का हो जाता , बयालीस का सीना।
मेरे पीछे दौड़ा करती स्वीटी , रीता और रीना।
नए लड़के अब आए ,
मेरी कुर्सी ऐसी हिलाए।
ना सासू पूछे न साली,
समझती कुछ भी नहीं अब घरवाली।
इन लड़कों ने ऐसा चक्कर चलाया,
खुद बन गए जीजा , मुझ को फूफा बनाया।
अब मुंह फुलाए घूम घूम सब को बताता हूं,
देखो भई फूला मुंह मेरा,
इसलिए फूफा कहलाता हूं।