नेनुआ की जीत
नेनुआ की जीत
आज कटहल शरमा गया,
नेनुआ से कैसे हार गया ?
कंपिटिसन का जमाना है
कब कौन किससे हार जाए,
किसको पता ?
नेनुआ को पका दिया,
बैंगन के चोखे जैसा बना दिया,
और कटहल के साथ कंजूसी कर दी।
जान-बूझकर हरा दिया।
नेनुआ को आरक्षित कोटे मे,
कटहल को सामान्य वर्ग का बना दिया।
याद दिलाया कटहल को,
युगों तक, तुम्हारे पुरखों ने,
अत्याचार किया था हम पर,
शादी-विवाह और उत्सवों
की शान थे –तुम।
और हम, लाचार, एक कोने में पड़े,
हमे कोई पूछता तक नहीं ।
बाकी सब्जियाँ कोरोनटाइन हैं,
डिप्रेसन में सड़ रही हैं।
कोरोना से लड़ रही हैं।
पता नहीं कब क्या हो जाए ?
कुछ दिन पहले,
दिशा भी दिशाविहीन होकर
चौदहवीं’ मंजिल से कूद पड़ी,
आज सुशांत भी शांत हो गया !
मैं पीछे मुड़कर नहीं देखता
क्योंकि यहाँ कभी किसी को
हरा दिया जाता है।
और पक्षपात से,
जीता भी दिया जाता रहा है।
आजादी के बाद से।