STORYMIRROR

Dilip Kumar

Tragedy

4  

Dilip Kumar

Tragedy

साम्राज्य नहीं

साम्राज्य नहीं

1 min
246

राजतंत्र अतीत की बात है,

अब कोई राजा नहीं, बड़ा नहीं! 

नीचा नहीं-ऊंचा नहीं 

अगड़ा नहीं- पिछड़ा नहीं, 

सब बराबर हैं। 

राज मिटे, साम्राज्य मिटे।

मिट गई ऐयाशियाँ !!


बड़ी गई वृंदावन, 

मुस्लिम- रानी पाकिस्तान!

किले खंडहर में बदल गए ! 

ढह रहे, जर्जर- से ! 

किले के अंदर की जमीन पर, 

 हो रहा -अतिक्रमण। 


किले का पुराना प्रहरी, 

राजा की जमीन को- बेच-बेचकर 

बन गया है- बिल्कुल शहरी। 

राजा तो राजा ठहरा 

उसे कुछ अता-पता नहीं। 


अमला-खैरा, कारिंदे, मंत्री-संतरी 

सबने लूट लिया मिलकर ! 

और तो और, एक तो करेला 

ऊपर से नीम चढ़ा। 

चुनाव में खड़ा करवा दिया,

हरवा दिया, अपने ही शुभचिंतकों ने 

सब कुछ मिटा के, 


अपना साम्राज्य गवां के 

प्रीवी पर्स पर जिंदा

राजा पागल हो गया। 

राज नहीं, साम्राज्य नहीं।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Tragedy