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Dilip Kumar

Others

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Dilip Kumar

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अधूरी बात

अधूरी बात

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झंझावात है 

चाहे दिन है- या- रात है

अधूरी हमारी बात है। 

 

अंतर्मन की आवाज 

अंतर मन का नाद- 

अंतर्मन की ध्वनि,

सामीप्य और सानिध्य का इच्छुक है 

एकाकार होना चाहता है 

लोग सोचते होंगे – 

वहाँ नीरवता होगी, असीम शांति होगी!

लेकिन यहाँ तो वासना है, कामना है!

तड़प है, कसक है। 

अंतर है, अंतर में, 

अंतर्मन में अंतर्तम है !! 

शोक, उदासी, एकाकीपन है। 

गम है !! 

जो अंदर है

वह खालीपन है,

अंतर्मन के अंतर को 

मन ही भर सकता है। 

मन भर कर मन भरने हेतु 

मैं तेरे मन में झाँक सकूँ ! 

तू मेरे मन में !!

मैं तेरे साथ ही –

अंतर्मन की गहराइयों में 

उतरना चाहता हूँ, 

मैं प्रवंचना नहीं कर सकता,

दिव्यता की, असीम शांति की, 

ढोल नहीं है- ढिंढोरा पीटने के लिए 

मेरा जो अंतर्मन है न 

एकाकी नहीं जी सकता 

बस !!

 

 

 

 


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