नवजीवन !
नवजीवन !
जीवन के बाद
जीवन ही है
नवजीवन !
बिल्कुल फ्रेश!
आत्मा सजीवनी है
आत्मा उभयलिंगी है
आत्मा शरीर मे है,
तो जीवन है।
शरीर नश्वर !
वास्तव में,
जीवन के बाद
नवीन यात्रा का आगाज,
जीवन- ही है।
यही सत्य है।
जीवन भर का कमाया,
बेकार नहीं जाता,
जीवन के बाद भी,
अगले जन्म तक,
काम आता है।
आत्मा दिव्य हो-
निखर उठती है।
स्वप्न लोक की ,
माया से मुक्ति !
नश्वर शरीर की,
छाया से मुक्ति ।
जीवन छोटा-बड़ा हो सकता है,
जीवन जीया जा सकता है,
जीवन-दान दिया जा सकता है।
जीवन को समझने के लिए,
त्याग और तप दोनों
किया जा सकता है।