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Dilip Kumar

Tragedy

4.5  

Dilip Kumar

Tragedy

सेनारी का फैसला

सेनारी का फैसला

1 min
352


न्यायधीश अंधे,

राजनेता बहरे,

प्रशासन गूंगी-बहरी दोनों

इनसे न्याय की आशा करने वाले

बेवकूफ ! प्रचंड मूर्ख।

सामाजिक न्याय –झांसा।

सेनारी, बारा या सिन्दुआरी

बीभत्स !

पहले था जंगल राज

अभी भी है

अमंगल राज।

नक्सलियों द्वारा

जातीय हिंसा, सैनिक संहार और

बलात्कार – परम दुष्ट !

और तुम्हारा मौन ?

जान कर भी अनजान

यही है साँठ-गाँठ।

यही है भ्रष्टाचार॥

शस्त्र और शास्त्र

पर था जिनका एकाधिकार !!

उनसे

लूट लिए हथियार

लूटी अस्मत

हर लिए प्राण –

फाड़ डाले पेट, निकाल ली आँखें।

फिर भी मौन-

अरे, निष्क्रिय जिंदा लाश के समान

बाभनों।  

कहाँ गयी तुम्हारी रार ?

बहुतेरे हैं तेरे नेतागण

बिरादर !

कोई सम्राट, कोई लक्ष्मीपति

कोई डाइमंड!!

राम, रामाश्रय जैसी संपदा तुम्हारी

फिर भी कोई काम न आया।

विधवाओं का क्रंदन,

निर्दोष, बेसहारा का कोई सहारा न बना

हाँ, ये सब घड़ियाल निकले ॥

सेनारी हत्याकांड के तुरंत बाद

एक अपढ़-गँवार मूर्खा ने कहा था

सेनारी क्यूँ जाऊँ ?

वोट तो वे हमें देते नहीं ।

निर्दयी, क्रूर व अत्याचारी

कंस और जरासंध का नाश करने

आया था एक और परशुराम-

वह भी छला गया अपनों से

अपनों से ही

हाँ- हाँ अपनों से।  



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