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Dr Jogender Singh(jogi)

Comedy

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Dr Jogender Singh(jogi)

Comedy

कुर्सी (खटाक)

कुर्सी (खटाक)

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खटाक की आवाज़ से,

अटक कर खुलती,

मुश्किल से संभालती,

जैसे/तैसे।

आए जो भी,

लोग कैसे कैसे, ऐसे/वैसे।


चार का परिवार,

खटाक ख़टाक करना,

सबका संस्कार।

आवाज़ खटाक की

बदतमीजी सी लगती।


हर मेहमानन खुश हो जाता,

सुन कर यह आवाज़।

स्वागत का विशिष्ट अंदाज़।


राजसिंहासन सी, खटाक

खटाक करती वो कुर्सियां चार।

शान थी, अभिमान थी,

थी वो परिवार।


उपेक्षित फोल्ड कर रख दी जाती

पोंछ पांछ फिर से तैयार,

आने को होते जब, मेहमान चार।

दादा जी आवाज़ लगाते, कुर्सी निकलो

ठाकुर साहब आए।


अरे कुर्सी की क्या जरूरत है ?

सीना तान, ठाकुर साहब फरमाएं।

तन जाती छाती, मूछें ऐंठ जाती,

बैठने को, कुर्सी प्यारी

जिसको भी, मिल जाती।


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