चलो खोज लाए
चलो खोज लाए
1 min
398
चलो खोज लाए थोड़ा सा प्रकाश
मुट्ठी भर आकाश
चूम लूँ गगन को
मिल आऊँ सज़न को
कटते पेड़ों की वेदना पढ़ लूँ
अपने हृदय में सारा दर्द भर लूँ
मैं परिंदा इस गगन का
कैसे इंसान का गुनाह माफ कर दूँ
मेरे हिस्से न कुछ बचा है
ईश्वर ने कितना कुछ रचा है
मेरे पंखों में
आया बस खंडहर है
पलकों पर उतरा बवंडर है
पेड़ कटते जा रहे हैं
घोंसले उजड़े जा रहे हैं
तुम ही बताओ
कहाँ घर बनाऊँ
क्या खंडहर में बस जाऊँ..?