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अनुभूति गुप्ता

Abstract

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अनुभूति गुप्ता

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कल्पनाओं में स्त्री

कल्पनाओं में स्त्री

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देहरी की सीमाएँ भूलकर

सब मर्यादाएँ तोड़कर

नील गगन में

आजाद पंछी-सा

उड़ने का मैंने सोचा है।


नदी की शीतल मधुर सौम्य

धारा पर नंगे पाँव

चलने का मैंने सोचा है।


मासूम-सी कल्पनाओं में

अपनी उजली सूरत पर

कमल खिलते हुए देखा है।


धवल चाँदनी-सा खुद को

इन स्याह रातों को

उज्ज्वल करते हुए देखा है।


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