STORYMIRROR

अनुभूति गुप्ता

Abstract

3  

अनुभूति गुप्ता

Abstract

द्वन्द्व

द्वन्द्व

1 min
456

गहराते विषाद में

शहर की इमारतें

सब मीनारें

डूब चुकी हैं

जीवन में उल्लास के

सुहावने पल नहीं

कहीं भी

चहलकदमी नहीं।


घोर सन्नाटा

बाँहे पसारे बैठा है

अब कहीं भी

तारों का टिमटिमाना

दीपों का झिलमिलाना

कोयल का कूकना

झरनों का बहना नहीं होगा।


बस भय से

डालियों का मूर्छित

होना होगा

पत्तों का थर-थर

काँपना होगा

चट्टानों का

चिटकना, टूटना, ढहना होगा।


सागर में तैरता हुआ

प्रकाश-द्वीप नहीं होगा

मनुष्यता का

प्रदीपन नहीं होगा।


होगा तो बस,

उतरी हुई सूरतों का रोना

टूटे हुए सपनों का ढोना

द्वन्द्व में फँसा हुआ

शहरी जीवन और

परिपक्व निर्जनता का भवन।


સામગ્રીને રેટ આપો
લોગિન

Similar hindi poem from Abstract