तडपती आँखें
तडपती आँखें
किराने की दूकान से कुछ दूर
मैंने उसे कुछ सिक्के गिनते देखा…
एक गरीब बेसहारा बच्चे की आँखों में
मैंने भूख को उस रात मरते देखा…
थी चाह उसे भी भर पेट खाना खाने की
पर मैंने उसे नल का पानी पी के डकार भरते देखा…
थी चाह उसे भी नए कपडे पहनने की
पर मैंने उसे पहने हुए कपड़ों को साफ करते देखा…
हम रो रो कर करते हैं अपने गम की नुमाइश
पर मैंने उसे हँसते हँसते ग़मों का घूँट पीते देखा…
थी नहीं माँ पास उसके
मैंने माँ के आँचल के लिए उसकी आँखों को तड़पते देखा…
कोई नहीं था सहारा उसके जीवन का
मैंने उसे उसकी छोटी बहन का सहारा बनते देखा…
जब मैंने कहा घर कहाँ है तुम्हारा
मैंने उसकी आँखों दुखों का पहाड़ टूटते देखा…
बहुत ही छोटी उम्र रही होगी उसकी
पर मैंने उसके अंदर बड़प्पन को पलते देखा…
मैंने वो देखा
जो कईयों ने देख के भी नहीं देखा,
लोग कहते हैं नया दिन होता है उम्मीद और खुशियों के लिए
तो क्यों मैंने उसे कल के लिए और व्याकुल होते देखा!!