बिकने को बस आसमान बाकी है
बिकने को बस आसमान बाकी है
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जमीन बिक चुकी हे
बिकने को बस आसमान बाकी है
वो जिनकी छत टपकती है भारी बरसात में
उनके ही सीने में बस ईमान बाकी है!!
दो वक़्त की रोटी भी किस्मत से मिलती हे जिनको
उनके पुरखों का चुकाना अब तक लगान बाकी है!!
न आज का भरोसा न कल का पता
यही काफ़ी नहीं अभी देना कई और इम्तहान बाकी हे!!
कर्म तो अदा कर चुके हे इस ज़िन्दगी का
मिलने को अब बस अंजाम बाकी हे!!