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Shraddha Pandey

Abstract

4.0  

Shraddha Pandey

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माँ

माँ

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पहली श्वांस भरी थी मैंने तेरी ही कोख में

जो तू मुझे छोड़ गई मर जाउंगी शोक में!

कदम कदम पे तूने संभाला जब भी मैं डगमगायी

मेरी हर एक चोट की तेरे आंसुओं ने की भरपाई!

न कोई उम्मीदें,न उमंगें न थे कोई भी सपने

तेरी ममता की छाया ने बतलाया क्या होते हैं अपने!

मुझे खिलाई अपने हिस्से का भूख नहीं है कहकर

अब तू ही बता जाऊं कहाँ तुझसे दूर मैं रहकर!

आ जा माँ ले चल मुझे फिर उसी सुहाने पल में,

तेरे बिना तो अंतर कुछ भी न आज में न कल में!

भर दे मेरी दुनिया फिर उन सुन्दर रातों से

आ-भी-जा बहुत दिन हुए न खाया तेरे हाथों से!

मैं तो एक शब्द हूँ तू पूरी भाषा है,

अपने बारे में क्या बतलाऊँ,तू ही मेरी परिभाषा है!!

जब भी डर लगता है जीवन में, याद तेरी ही आती है,

जो महंगी चीज़ें न देती वो सुकून दे जाती है!



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