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Arun Kr Jaiswal

Children Stories

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Arun Kr Jaiswal

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तुम्हारा नालायक बेटा

तुम्हारा नालायक बेटा

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हाँ, जायज़ था

मुझसे, तुम्हारा नाराज़ होना,

खुद के लिए नहीं

दूसरों के लिए परेशान होना।


हाँ, मेरे खुद के न होने का मतलब

'दूसरा' ही समझ आता था मुझे,

रिश्तों की क़दर कर

सही और ग़लत की समझ के साथ,

लोगों को अपना बनाना सिखाया तुमने।


जो मेरी नज़र में परेशानी थी

उसे जिम्मेदारी बताया तुमने,

सुबह की पहली किरण से

रात के चमकते चाँद तक,

बात-बात में फटकार लगाया तुमने।


तमाम ऐसी बातें थी

जिसका मतलब समझाया तुमने,

मैं समझ न सका था उस रोज़

दरअसल हर डांट में भी

बस प्यार जताया तुमने।


सुनो न माँ,

अब नाश्तें, खाने और उन

गंदे कपड़ों की बात न करूँगा, 

अब हर बात भी न बोल पाता मैं

क्योंकि अब सुनते सभी

बस कोई समझ न पाता मुझे।


समझता था, परिवार से

इतर भी एक जहाँ है,

और इस अनोखी

दुनिया में पाया भी मैंने,

पर अब भी जब किसी रोज़

थक कर बिन खाए सो जाता हूँ मैं,

तो ग्लास से भरा दूध और

बालों की मालिश याद करता हूँ मैं।


हाँ,

बड़ा तो हो चुका हूँ मैं,

जो अब तुम भी मुझे जताती हो,

पर बहुत छोटा महसूस करता हूँ मैं

जब अपनी ज़रूरत पर भी

मुझे देख, चुप रहती तुम

और फिर भी शायद मैं

समझ न पाता तुम्हें।


मिली हर आज़ादी

जिसकी चाहत थी,

उस बचपन की नादानी में

आज इन रस्तों पर

जब कुछ दूर निकल चुका हूँ,

समझ पा रहा हूँ

तेरा मुझे रोकना भी जायज़ था।

मैं ही न समझ सका

शायद तुम सही कहती थी,

मैं नालायक था।


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