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Prem Bajaj

Fantasy

4  

Prem Bajaj

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दो जून की रोटी

दो जून की रोटी

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दो जून की रोटी के लिए क्या-क्या 

नहीं करना पड़ता हर इन्सान को ‌ 

कोई कमाता ईमानदारी से तो

कोई धोखा दे देता भगवान् को।


कोई दिन भर धकेल के रिक्शा

तन को जलाता धूप में

कभी-कभी तो फिर भी देखो

नसीब में उसके रोटी ना होती।


मोची बैठा सड़क पर एक

एक जूती को टांका लगाता

तब जाकर उस बेचारा का

रोटी का जुगाड़ बन पाता।


किसान जब दिन रात करके मेहनत

बंजर धरती को भी उपजाऊ बनाता दे कर निवाले

सारे जग को कभी -कभी खुद भूखा सो जाता।


कोई देखो दो जून की रोटी के लिए

मजबूर उस मां को करता

जो बैठी सड़क पर अपने

तन की बोली लगा रही है।


बच्चों का पेट पालने को 

तन-मन वो बिका रही है।

हे ईश्वर ना ऐसा कहर करना

किसी पर कि कोई तरसे

दो जून की रोटी को  


हो कोई धोबी, फूल वाला या

चाहे कोई कवि या कलाकार

रेहड़ी वाला रिक्शा वाला ना

देना किसी को भूख की मार।


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