मन की बात
मन की बात
यूँ तो इंसान खालीपन से
घबराता है,
पर कभी-कभी
ख़ामोश
सदाओं को सुनना भी,
एक अजीब सा
सुकून दे जाता है !
वो मन जिससे कभी कोई
बात नहीं छुपती,
जो हजार आँखों से,
सब देख लेता है !
भीड़ से दूर उसी
अंर्तमन में उठते झंझावत को,
साफ सुन पाते हैं !
कितना कुछ कहना है
इस मन को...
जो इस अंर्तमन में
दफ़न है !
वो भी चाहता है
कि कभी कोई उसके लिये भी,
वक्त निकाले उसे सुने समझे,
मन की करते तो सब हैं
पर इसे सुनता कौन है।
