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Kunda Shamkuwar

Abstract Fantasy Others

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Kunda Shamkuwar

Abstract Fantasy Others

लफ़्ज़ों की जुम्बिश

लफ़्ज़ों की जुम्बिश

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एक दिन कविता कवि से खासी नाराज़ हो गयी                                
आजकल कवि बस इश्क़ मोहब्बत वाली कविता लिखने लगा था

मैं सारे लफ़्ज़ों को उल्टा लिखूँगी

फिर देखती हूँ कवि क्या करता है

शाम को कवि डायरी और कलम लेकर लिखने लगा

कविता ने लफ़्ज़ों के साथ कवि से खेल खेलना शुरू किया

कवि ने कागज़ पर चांदनी रात में चमकता चाँद लिखा

कागज़ में गर्मियों की जर्द दोपहर लिखा देखकर कवि हैरान हुआ

कवि ने कागज़ पर आज़ादी लिखी
कवि को कागज़ पर पिंजरा लिखा हुआ मिला

कवि ने फिर मोहब्बत लिखा तो ख़ुदा लिखा हुआ आ गया
अब उसने ख़ुदा लिखा और सोचने लगा देखे क्या लिखा आता है

कवि अचरज हुआ जब उसने फिर मोहब्बत लिखा हुआ पाया

कवि लफ़्ज़ों के बदलने से परेशान होने लगा

जब भी ख़ुदा लिखता...मोहब्बत लिखा हुआ आता....
जब भी मोहब्बत लिखता, ख़ुदा लिखा हुआ आता...

अब कवि ने सोचा की कुछ और लिख कर देखता हूँ ...
अल्फ़ाज़ों को चकमा देकर देखता हूँ

उसने ताबड़तोड़ लिखा ...

हिंदू ,मुसलमान, सिख, ईसाई...

सोचा अब बहुत सारे शब्द आएँगे

लेकिन यह क्या !!!

सारे लफ़्ज़ कहीं खो गये और कागज़ पर सिर्फ एक लफ़्ज़ था... इंसान !!!












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