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Kunda Shamkuwar

Abstract Fantasy Others

4.9  

Kunda Shamkuwar

Abstract Fantasy Others

लफ़्ज़ों की जुम्बिश

लफ़्ज़ों की जुम्बिश

1 min
100


एक दिन कविता कवि से खासी नाराज़ हो गयी                                
आजकल कवि बस इश्क़ मोहब्बत वाली कविता लिखने लगा था

मैं सारे लफ़्ज़ों को उल्टा लिखूँगी

फिर देखती हूँ कवि क्या करता है

शाम को कवि डायरी और कलम लेकर लिखने लगा

कविता ने लफ़्ज़ों के साथ कवि से खेल खेलना शुरू किया

कवि ने कागज़ पर चांदनी रात में चमकता चाँद लिखा

कागज़ में गर्मियों की जर्द दोपहर लिखा देखकर कवि हैरान हुआ

कवि ने कागज़ पर आज़ादी लिखी
कवि को कागज़ पर पिंजरा लिखा हुआ मिला

कवि ने फिर मोहब्बत लिखा तो ख़ुदा लिखा हुआ आ गया
अब उसने ख़ुदा लिखा और सोचने लगा देखे क्या लिखा आता है

कवि अचरज हुआ जब उसने फिर मोहब्बत लिखा हुआ पाया

कवि लफ़्ज़ों के बदलने से परेशान होने लगा

जब भी ख़ुदा लिखता...मोहब्बत लिखा हुआ आता....
जब भी मोहब्बत लिखता, ख़ुदा लिखा हुआ आता...

अब कवि ने सोचा की कुछ और लिख कर देखता हूँ ...
अल्फ़ाज़ों को चकमा देकर देखता हूँ

उसने ताबड़तोड़ लिखा ...

हिंदू ,मुसलमान, सिख, ईसाई...

सोचा अब बहुत सारे शब्द आएँगे

लेकिन यह क्या !!!

सारे लफ़्ज़ कहीं खो गये और कागज़ पर सिर्फ एक लफ़्ज़ था... इंसान !!!












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